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लेखनी प्रतियोगिता -13-Apr-2023औरत के प्यार में धोका नहीं वात्सल्य



                   औरत के  प्यार में धोका नहीं  वात्सल्य होता है


                   रागिनी विधवा थी पर श्रृंगार ऐसा कर के रखती थी कि पूछो मत। बिंदी के सिवाय सब कुछ लगाती थी। पूरी कॉलोनी में उनके चर्चे थे। उनका एक बेटा भी था जो अभी नौंवी कक्षा में था।रागिनी के  पति बैक  में थे उनके गुजर जाने के बाद  बैंक ने उन्हें एक छोटी से नौकरी दे दी थी। 


              रागिनी के  जलवे अलग ही थे।   उस जमाने मैं भी वह बॉब कटिंग रखती थी। सभी कालोनी की आंटियां उन्हें 'बरकटी' कहती थी।       
            रोहन भी उस समय नया नया जवान हुआ था। अभी 16 साल का ही था। लेकिन घर बसाने के सपने देखने शुरू कर दिए थे। रोहन का आधा दिन आईने के सामने गुजरता था और बाकि आधा बरकटी आंटी की गली के चक्कर काटने में।  वह अपने दिल से आन्टी को चाहने लगा था। वह छिप छिपकर बरकटी आन्टी को  देखता था।

       रोहन  का नवव्यस्क मस्तिष्क इस मामले में काम नहीं करता था कि समाज क्या कहेगा? यदि उसके दिल की बात किसी को मालूम हो गई तो? उसे किसी की परवाह नहीं थी। बरकटी आंटी को दिन में एक बार देखना उसका जूनून था। 

                    यह एक दिन की घटना थी कि  उस दिन बारिश अच्छी हुई थी। रोहन  स्कूल से लौट रहा था। साइकिल पर ख्वाबो में गुम उसे पता ही नहीं लगा कि अगले मोड़ पर कीचड़ की वजह से कितनी फिसलन थी। अगले ही क्षण जैसे ही वह अगले मोड़ पर मुड़ा साइकिल फिसल गई और रोहन  नीचे गिर गया। 

         उसी वक्त दुर्भाग्य से  सामने से आ रहे स्कूटर ने भी टक्कर मार दी। रोहन  का सर मानो खुल गया हो। खून का फव्वारा फूटा। रोहन  दर्द से ज्यादा इस घटना के झटके से स्तब्ध था। वह गुम सा हो गया। भीड़ में से कोई उसकी सहायता को आगे नहीं आ रहा था। खून लगातार बह रहा था। 

          तभी एक जानी पहचानी आवाज  रोहन रोहन  नाम पुकारती हुई सुनाई पडी़।। रोहन की धुंधली हुई दृष्टि देखती है कि बरकटी आंटी भीड़ को चीर पागलों की तरह दौड़ती हुई आ रही थी। बरकटी आंटी ने रोहन का सिर गोद में लेते ही उसका माथा जहाँ से खून बह रहा था उसे अपनी हथेली से दबा लिया। आंटी की रंगीन ड्रेस खून से लथपथ हो गई थी। आंटी चिल्ला रही थी "अरे कोई तो सहायता करो, यह मेरा बेटा है, कोई हॉस्पिटल ले चलो हमें।" 

            रोहन को वह वक्त  आज तक  याद है। एक तिपहिया वाहन रुकता है। लोग उसमे उन दोनों को बैठाते हैं। आंटी ने अब भी उसका माथा पकड़ा हुआ था। उसे सीने से लगाया हुआ था। 

          रोहन  को टांके लगा कर घर भेज दिया जाता है।

        बरकटी आंटी ही उसे रिक्शा में घर लेकर जाती हैं। रोहन अब ठीक है। लेकिन एक पहेली उसे समझ नहीं आई कि उसकी वासना कहाँ लुप्त हो गई थी। जब बरकटी आंटी ने उसे सीने से लगाया तो उसे ऐसा क्यों लगा कि उसकी माँ ने उसे गोद में ले लिया हो। वात्सल्य की भावना कहाँ से आई। उसका दृष्टिकोण कैसे एक क्षण में बदल गया। क्यों वह अब मातृत्व के शुद्ध भाव से बरकटी आंटी को देखता ।

              आज रोहन  रेलवे से रिटायर्ड अफसर है। समय बिताने के लिए कम्युनिटी पार्क में जाता है। वहां बैठा वो आज सुन्दर औरतों को पार्क में व्यायाम करते देख कर मुस्कुराता है। क्योंकि उसने एक बड़ी पहेली बचपन में हल कर ली थी। वो आज जानता है, मानता है,कि महिलाओं का मूल भाव मातृत्व का है। वो चाहें कितनी भी अप्सरा सी दिखें दिल से हर महिला एक 'माँ' है। 

                वह 'माँ' सिर्फ अपने बच्चे के लिए ही नहीं है। वो हर एक लाचार में अपनी औलाद को देखती है। दुनिया के हर छोटे मोटे दुःख को एक महिला दस गुणा महसूस करती है क्योंकि वह स्वतः ही कल्पना कर बैठती है कि अगर यह मेरे बेटे या बेटी के साथ हो जाता तो? इस कल्पना मात्र से ही उसकी रूह सिहर उठती है। वो रो पड़ती है और दुनिया को लगता है कि महिला कमजोर है।                        

          रोहन  मुस्कुराता है,मन ही मन कहता है ,  "हे, विश्व के भ्रमित मर्दो! हर औरत दिल से कमजोर नहीं होती, वो तो बस 'माँ' होती है। इसलिए कमजोर दिखती है। उसके प्यारमें धोका नही बात्सल्य होता है।

        औरत की डिक्सनरी में धोके के चान्श बहुत कम होते है।

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4 Comments

Punam verma

14-Apr-2023 08:50 AM

Nice

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Abhinav ji

14-Apr-2023 08:31 AM

Very very true and very nice 💯

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शानदार लिखा

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